गुरुवार, 22 जुलाई 2010

जलवायु परिवर्तन :विश्व के समक्ष बढ़ता संकट

आज संपूर्ण विश्व में वैश्विक तपन एक प्रमुख समस्या बनकर उभरी हैं. ग्लोबल वार्मिंग मानव के द्वारा जन समस्या हैं न की प्रकृति के द्वारा. ग्लोबल वार्मिंग के लिए हम मनुष्य खुद जिम्मेदार हैं ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु में आये परिवर्तन ने पृथ्वी के जीवधारियो और वनस्पति जगत के समक्ष उनके अस्तित्व का संकट उत्पन्न कर दिया हैं .कही असामान्य वर्ष हो रही हैं ,कही असमय ओले पड़ रहे हैं, कही गलेशियर पिघलते जा रहे हैंतो कही रेगिस्तान पसरते जा रहे हैं. वैश्विक तपन के कारण दुनिया के तटवर्ती द्वीप जैसे पापुपा न्यू गिनी, मौरीसस आदि के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया हैं . पापुआ न्यू गिनी का तो अस्तित्व समाप्त होने के कगार पर हैं. वहा से लोग जीवन की तलाश में दुसरे जगह जा रहे हैं . आस्ट्रेलिया में हुए एक शोध के अनुसार वैश्विक तपन के कारण इन द्वीपों के समुंद्री जलस्तर में 8 .2 मिलीमीटर की बढ़ोतरी हो रही हैं. इससे स्पष्ट हैं की आने वाले समय में स्थिति गंभीर होने वाली हैं . भारतीय संविधान में पर्यावरण संरक्षण का भी प्रावधान हैं . 42 संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में 48 ए और 51 ए (जी ) जोड़ा गया. जिसके अनुसार प्रयावरण संरक्षण का दायित्व राज्य के सरकार और उसके नागरिको पर डाला गया . स्टोक होम में 1972 में हुए संयुक्त राष्ट्र मंविये सम्मलेन में पर्यावरण के क्षेत्र में अनेक कानूनों के निर्माण को दोष प्रदान किया गया. जल अधिनियम , वायु अधिनियम , पर्यावरण से जुडी प्रावधानों को संविधान में शामिल किया गया. भोपाल में हुए 1984 के गैस त्रासदी में भारतीय वैधानिक प्रणाली की खामिया सामने आई .ऐसी त्रासदी से निपटने की लिए सरकार ने 1984 में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम बनाया हैं. वैश्विक तपन के मुख्य कारण मनुष्य की विष्फोटक जनसँख्या हैं और उसके अनियंत्रित ,तथाकथित विकाश की बढ़ती उर्जा जरूरतों को पूरा करने हेतु जलाये जाने वाले जीवाश्म इंधन जैसे पेट्रोलियम ,कोयला आदि से निकलने वाली कार्बन डाइ ऑक्साइड ,व अन्य ग्रीन हॉउस गैसे जैसे मीथेन, नाइट्रस ऑक्सा ईंड और सी ऍफ़ सी हैं. पृथ्वी के वातावरण में आज ग्रीन हॉउस गैसों की सांद्रता बहुत उच्च स्तर तक पहुँच चुकी हैं. जिससे धरातल से परावर्तित होने वाली ऊष्मा इन गैसों के कारण वायुमंडल में फंस जाती हैं .और पुरे विश्व का तापमान बढ़ा देती हैं.कार्बन डाइ औक्सआइडऔर क्लोरो फ्लोरो कार्बन मुख्य रूप से ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं . वैश्विक तपन के कारण भारत जैसे अत्यधिक जनसंख्या वाले देशो दूरगामीप्रभाव परने की संभावना हैं. हिमालय की हमखंड के पिघलने और उपलब्ध जल से ज्यादा वाष्प के उत्सर्जन से उत्तर - दक्षिण भारत में पानी की भरी किल्लत हो सकती हैं. जिसके परिणामस्वरूप कृषि उत्पादन पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा और हमारे समक्ष खाद्य संकट पैदा हो जायेगा. यह संकट आने के पहले ही हमें ग्लाबल वार्मिंग से निपटने हेतु व्यापक स्तर पर अभी से ही तैयारी शुरू करने की जरुरत हैं. जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्य रूप से विकसित देश ही जिम्मेदार हैं . दुनिया में सबसे अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन अमेरिका करता हैं. कार्बन उत्सर्जन की परिणामस्वरूप हिमालय हिल गया हैं .इससे गंगा के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया हैं . भारत में हिमालय और कृषि की बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका हैं और यह सभी कार्बन उत्सर्जन से अधिक प्रभावित हैं. अतः भारत को कार्बन उत्सर्जन के मामले में बहुत ही सावधान रहना चाहिये. आज कल विकसित देश एक नए फंडे का उपयोग कर रहे हैं . वे अपने देश में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्र को कम न कर अपना धन विकाशशील देशो में लगा रहे हैं वहां कार्बन डाइ ऑक्साइड में हो रही कटौती का श्रेय खुद ले रहे हैं . इस तरह वे बिना कटौती किये ही इसका श्रेय ले रहे हैं. ग्लोबल वार्मिंग को रोकने हेतु उपाय. 1 .ज्यादा- ज्यादा वृक्ष लगाने चाहिये.2 फ्रिज, ए .सी., और अन्य कुलिंग मशीनों का प्रयोग कम से कम करना चाहिये.3 . पवन और सौर उर्जा के द्वारा बिजली उत्पन किया जाना चाहिये.4 .शैक्षिक पाठ्यक्रम में अनिवार्य रूप से इसे शामिल किया जाना चाहिये .5 .जनसंख्या वृद्धि पर रोक लगनी चाहिये.6 .जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामो के बारे में प्रचार- प्रसार कर जागरूकता अभियान चलाना चाहिये. 7 . बिज़ली का कम से कम प्रयोग करना चाहिये .काम खत्म होने के बाद कंप्यूटर, ए .सी. ,टी. वी.आदि बंद करना चाहिये. जलवायु परिवर्तन से देश का चतुर्दिक विकाश रुक सकता हैं.अतः ऐसे सरे उपाए किये जाने चाहिये जिनसे जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित किया जा सके.

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