गुरुवार, 22 जुलाई 2010

बाल श्रम: बर्बाद होता बचपन

यह एक शर्मनाक सच्चाई हैं कि विश्व में सर्वाधिक बाल श्रमिक भारत में हैं .सरकारी आंकड़ो पर यदि गौर करे तो बाल श्रमिको की संख्या लगभग 2 करोड़ हैं परन्तु निजी स्रोतों पर गौर करे तो यह लगभग 11 करोड़ से अधिक हैं .सरकारी व निजी दोनों आंकड़ो में जमीन आसमान का अंतर हैं .स्पष्ट हैं की भारत में कितने बाल श्रमिक हैं यह स्पष्ट रूप से मालूम नहीं हैं .दोनों के आंकड़ो मेंविरोधाभास हैं . गरीब तबको में परिवार नियाजन के प्रति अरुचि के कारण बाल मजदूर की संख्या तेजी से बढ़ी हैं इसमे कोई दो राय नहीं की बाल श्रमिक का मूल कारण गरीबी ही हैं . माना की किसी गरीब के पास चार बच्चे हैं अगर वे चारो 1000 1000 रूपये के महीने कमाते हैं तो गरीब व्यक्ति के पड़ 4000 हज़ार रूपये होते हैं . वह व्यक्ति सोचता हैं की अगर मै इसे पढ़ता तो मुझे पैसे खर्च करने पड़ते लेकिन जब मेरे बच्चे मुझे काम कर मुझे नियत वेतन देते हैं तो बच्चो को पढ़ने से क्या फायदा? .वह व्यक्ति ऐसा इसलिए सोचता हैं क्यूँ की वह अशिक्षित होने के साथ -साथ गरीब हैं .उसे शिक्षा के महत्व के बारे में पता नहीं हैं. विधान की धारा 24 कहता हैं की 14 वर्ष से काम उम्र के बच्चो को कारखाना ,अथवा खान या किसी ऐसे काम में नही लगाया जायेगा जो जोखिम भरा हो .संविधान की धारा 39 में बच्चो की शोषण और दमन के विरुद्ध संरक्षण की व्यवस्था दी गई हैं .इसके अलावा 1951 में बागन श्रमिक अधिनियम बनाया गया जिसके अनुसार चाय, कॉफ़ी के बागानों में 12 वर्ष से काम उम्र के बच्चो को इस काम में नहीं लगाया जा सकता हैं .इसके एक साल बाद 1952 में खाधान में काम करने के लिए डाक्टरी प्रमाण पत्र आवश्यक किया गया .1961 में मोटर परिवहन श्रमिक अधिनियम बनाया गया जिसके अनुसार 15 वर्ष से काम उम्र के बच्चों को किसी भी मोटर परिवहन अंडरटेकिंग में किसी भी रूप में काम करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया. 1966 में बीडी औरे सिगरेट अधिनियम बनाया गया तथा राज्य में व्यापारिक प्रतिष्ठानों अधिनियम द्वारा बच्चो के कल्याण से जुड़े कानून बनाये गए. 1986 में बाल श्रमिक अधिनियम पारित किया गया जिसके अनुसार 14 वर्ष से काम उम्र के बच्चो को किसी भी औधोगिक प्रतिष्ठानों में काम करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया .1987 में राष्ट्रीय बाल श्रम नीति बनाई गई. जिसमे उनकी शिक्षा , मनोरंजन ,सामान्य विकास के कार्यक्रमों पर बल दिया गया. भारत के संविधान और कानून ने बच्चो को हर जगह सुरक्षा प्रदान किया हैं .परन्तु राजनैतिक और सामाजिक इच्छा शक्ति नहीं होने के कारण इसे लागू करने में परेशानिया आती हैं सरकार को चाहिए की .कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करे और उनके पुनर्वास पर भी ध्यान दे .क्योंकि बचपन कभी नहीं लौटता .अतः बच्चो के उत्थान के लिए एक इमानदार प्रयास करने की जरुरत हैं . सिर्फ हर साल 12 जून को धूमधाम से बाल श्रमिक दिवस मनाने से कुछ होने वाला नहीं हैं .

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