सोमवार, 26 जुलाई 2010

भोजन का हक़ :एक अवलोकन

सभी राजनितिक पार्टिया चुनाव के समय अपने चुनावी घोषणा पत्र में यह वादा करती हैं की वे यदि सत्ता में आये तो गरीबो को रियायती मूल्य पर अनाज दिया जायेगा . वर्तमान सरकार के सत्ता में आने के बाद इस दिशा में कुछ कार्य अवश्य हुए . मगर सवाल उठता हैं की क्या ऐसी कोई योजना बनने के बाद क्या सभी गरीबो को अनाज मिल सकेगा . अव्यवस्थित राशन प्रणाली गरीबो तक अनाज पंहुचा सकेगी .यह असंभव सा लगता हैं. महात्मा गाँधी ने 1946 के नोआखाली सभा में कहा था की भूखे के लिए रोटी ही भगवान हैं .भजन का हक़ सभी मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार हैं .
संविधान का अनुच्छेद 21 गारंटी देता हैं की किसी व्यक्ति को विधि के द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा उसके जीवन या उसकी वैयाक्तितक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता हैं . 1948 में संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा में इसे भी समाहित किया गया. परन्तु कुछ समय पूर्व के घटनाक्रमों से से यह स्पष्ट हो जाता हैं की सभी के लिए भोजन का लक्ष्य दूर होता जा रहा हैं. एक आंकड़े के अनुसार 2006 -2008 के बिच खाधानो की कीमत 83 %बढ़ी जिसके परिणामस्वरूप भूख ,अल्पपोषण व राजनितिक अस्थिरता बढ़ी .
विकाशशील देशो में जहा परिवार की आय का 60 - 80 % हिस्सा भोजन पर खर्च किया जाता हैं. वहां खाधान की कीमतों में 20 %की वृद्धि करीब 10 करोड़ लोगो को B .P L की सूचि में शामिल कर देती हैं .भारत में अनाज की मांग साल दर साल बढ़ती जा रही हैं .जब की अखाधय फसल 5 -6 % की दर से बढ़ रही हैं. हमारे किसान अब ऊँची कीमत वाली फसलो की तरफ बढ़ रहे हैं क्यूँ की उन्हें वहा अधिक लाभ मिलता हैं .अतः स्वाभाविक हैं भुखमरी का बढ़ना.
पी डी एस में 36 % अनाज घपलेबाजी और 21 % उंच वर्गों तक चला जाता हैं ऍफ़ सी आई से गाड़ी खुलने के गाड़ी मरकत में चली जाती हैं . 11 राज्य और केंद्र शाशित प्रदेशो को छोड़ कर अनाजो की कालाबाजारी खूब हो रही हैं. उत्तर -पूर्वी राज्य की स्थिति तो काफी ख़राब हैं वहा तो एक भी दाना राशन प्रणाली के तहत नहीं बिकता हैं .गरीबो के इस अधिकार में संगठित गिरोह काम कर रहे हैं .फर्जीबाड़ा के इस धंधे को रोकने के लिए सरकार ने कुछ ठोस कदम उठाये हैं .2 साल में 11 राज्य में 67 लाख राशन कार्ड को निरष्ट किया जा चुका हैं .
सरकार को सभी गांवो में बिजली ,सड़क की सुविधा जल्द से जल्द पहुचना चाहिये. बिचौलिओ को बर्दाशत नहीं करना चाहिये. भुखमरी पर सीधा हमला करने के लिए भोजन का अधिकार जरुरी हैं . सरकार को आधारभूत संरचनाओ को विकसित करना चाहिये जिसके बल पर गरीब स्वावलंबी बने और उन्हें किसी सरकारी सुविधा की जरुरत ही न पड़े. यह कृषि और ग्रामीण जीवन को व्यवस्थित कर संभव हो सकता हैं . हमारे नदिया जैसे गंगा-सतलज -ब्रहंपुत्र और कृष्णा -गोदावरी- कावेरी के डेल्टा भूमि में इतनी क्षमता हैं की वह सभी का पेट भर सकती हैं. परन्तु इसके लिए हमें विकाश की रणनीति के केंद्र में जल , जंगल ,जमीं व गांवो को रखना होगा .

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